महाराणा सांगा
(Maharana Sanga)
(12 अप्रैल 1482 - 30 जनवरी 1528)
उदयपुर में सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा, बहादुर योद्धा व शासक, उदारवादी तथा राणा रायमल के सबसे छोटे पुत्र राणा सांगा (पूरा नाम -महाराणा संग्राम सिंह) का जन्म 12 अप्रैल 1482 को चित्तौड़ दुर्ग (मेवाड़ साम्राज्य, राजस्थान) में हुआ था।
जानने योग्य :-
• महाराणा रायमल के दोनों बड़े पुत्रों की मृत्यु के बाद सांगा को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाया गया तथा 24 मई 1509 मे उनका राज्याभिषेक हुआ था।
• बतौर महाराणा उनका शासनकाल वर्ष 1509 से वर्ष 1528 तक रहा था।
• इस दौरान सबसे शक्तिशाली हिन्दू राजाओं में से एक राणा सांगा ने दिल्ली, गुजरात, व मालवा मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की ऱक्षा बहादुरी और दिलेरी से की थी। “पाती परवन” परम्परा के अनुसार राणा सांगा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी राजपूतों को एकजुट करने का कार्य किया था।
• 16 मार्च,1527 ई. में बाबर के विरुद्ध खानवा के युद्ध में राणा सांगा बुरी तरह घायल अवस्था में ही बसवा आए जहाँ 30 जनवरी,1528 (कालपी) में वे मृत्यु को प्राप्त हुए। परन्तु उनका विधि विधान से अन्तिम संस्कार माण्डलगढ (भीलवाड़ा) में हुआ था।
• राणा सांगा के उत्तराधिकारी रतन सिंह द्वितीय थे।
पाती परवन :-
• यह तक राजपूती परंपरा है जिसके तहत एक राजा राजस्थान के प्रत्येक सरदार व महाराणाओं को अपनी ओर से युद्ध मेँ शामिल होने का निमंत्रण देता था।
कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार :-
• “सांगा के शरीर पर निरंतर घाव बने ही रहते थे। विभिन्न युद्धों में उन्होंने अपनी एक भुजा, एक आँख तथा एक पैर तक गवां दिया था। खानवा के युद्ध में तो उनके शरीर पर 80 घाव लगे थे। उन्हें अगर ‘एक सैनिक का भग्नावशेष’ कहा जाए तो शायद गलत न होगा।”
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Please do not enter any spam link in the comment box